बाबा ने सिर पर ढके कम्बल पर हाथ रखा। एक पल में ऐसा लगा जैसे मैं चेतना शून्य हो गया। कुछ देर बाद ऐसा लगा जैसे बाबा ने मेरे सिर सिर के ऊपर से हाथ हटा दिया। चारों ओर कोलाहल की आवाज आ रही थी। मैंने जब अपने ऊपर से कम्बल हटाया तो देखा कि मैं हरिद्वार के घाट की सीढी पर बैठा हूँ और मृगचर्म भी था। आज भी वह मृगचर्म मेरे मन्दिर में सुरक्षित है। उसी पर बैठ कर आज भी साधना करता हूँ। आज अस्सी की उम्र पार कर रहा हूँ लेकिन वह घटना आज भी मेरे मानसपटल पर अंकित है। ऐसी कौन सी विद्या अथवा शक्ति थी कि जिस पहाड़ी में पहुँचने तक मुझे सात दिन लगे थे उसी पहाड़ी से पल भर में जिस स्थान से चला था वहीं आ गया....।
प्राणतत्त्व अति महत्वपूर्ण है। इसकी सत्ता स्वतन्त्र है।शरीर पाँच तत्त्वों से निर्मित है। प्राणतत्त्व के माध्यम से आत्मतत्त्व से उनका सम्बन्ध बनता है और शरीर हो जाता है चैतन्य जिसे हम जीवन कहते हैं। पंचतत्त्वों का क्रमशः क्षय होता है। पंचतत्त्व निर्मित शरीर का क्षय होता है, परिवर्तन नहीं। लेकिन प्राणतत्त्व के बीच से हटते ही आत्मतत्त्व अलग हो जाता है शरीर से। इसी का नाम मृत्यु है।
Parlok Ke Khulate Rahasya
Title Parlok Ke Khulate Rahasya Author Shri Arun Kumar Sharma Compilation Shri Manoj Sharma Language Hindi Publication Year: First Edition - 2012 Price Rs. 300.00 (free shipping within india) ISBN 9788190679688 Binding Type Hard Bound Pages iv + 75 + 332 Pages Size 22 cm x 14 cm