ऐसा ही किया कमलेश्वर ने। आँखें बन्द करके लामा की गोद में बैठ गये एक बालक की तरह। उसके बाद फिर उन्हें किसी प्रकार का बाह्य ज्ञान नहीं रहा। लगभग एक घण्टे बाद कमलेश्वर को आँखें खोलने का आदेश मिला और जब उन्होंने आँखें खोली तो आश्चर्यचकित रह गये। वे तिब्बत के किसी अति दुर्गम प्रदेश में थे। सिर घुमाकर चारों ओर देखा लेकिन उनके लामा गुरु जिनके साथ वे आकाशमार्ग से आये थे - कहीं नजर नहीं आये। कमलेश्वर को घोर आश्चर्य हुआ। उस हिमप्रान्त में अकेले थे वह। झिर-झिर कर बर्फ के कण आकाश से गिर रहे थे उस समय। चारों तरफ घोर निस्तब्धता छायी हुई थी वातावरण में। न जाने क्या सोचकर धीरे-धीरे एक ओर बढने लगे कमलेश्वर।
काफी देर चलने के बाद कमलेश्वर को एक गुफा दिखाई दी। गुफा का द्वार तो छोटा था लेकिन एक व्यक्ति आसानी से प्रवेश कर सकता था उसमें। वे गुफा के सामने खड़े होकर सोचने लगे कि गुफा के भीतर प्रवेश करें या न करें और तभी अचानक एक बर्फीला तूफ़ान आया और उड़ा ले गया कमलेश्वर को। बेहोश हो गये वह और जब होश आया तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि उनका शरीर बर्फ़ से ढका हुआ है और वे उसे देख रहे हैं। उनको आश्चर्य और कौतूहल इस बात का था कि वे अपने शरीर से अलग कैसे हैं? क्या वे तूफ़ान में फँसकर मर चुके हैं। हाँ! मर चुके थे वो। शरीर से उनका अब कोई सम्बन्ध नहीं रह गया था। लेकिन उनके अपने आपमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। वे जैसे जीवित अवस्था में थे वैसे ही मृत अवस्था में भी। लकिन हल्कापन अधिक अनुभव कर रहे थे कमलेश्वर। एकाएक उन्हें उस गुफा की याद आयी। थोड़ी ही देरे बाद पहुँच गये वह गुफा के सामने और किसी अज्ञात प्रेरणा के वशीभूत होकर उसके भीतर चले गये। कुछ ही दूर जाने पर एक पत्थर की वेदी पर पद्मासन की मुद्रा में नेत्र बन्द किये एक महात्मा को देखा बैठे हुए।
उस महात्मा को देखकर उनको घोर आश्चर्य हुआ, इस बात का कि वह महात्मा कोई और नहीं स्वयं वे ही थे-- पाषाण की वेदी पर बैठे पद्मासन की मुद्रा में, एक सौ अस्सी वर्ष पूर्व उसी काया का त्याग किया था उन्होंने और तब से अविचल बैठी हुई थी उनकी वह काया मृतवत।
अपनी पूर्व मृतकाया को देखकर कमलेश्वर की आत्मा विह्वल हो उठी एकबारगी और प्रबल आकर्षण के वशीभूत होकर उस मृतकाया में प्रविष्ट हो गये और उसी के साथ वह मृतकाया पुनःजीवित हो उठी। जिसके भीतर थी कमलेश्वर की नहीं बल्कि एक महान योगी की आत्मा जिसका एक सौ अस्सी वर्ष पूर्व गुरु प्रदत्त नाम था चैतन्यप्रज्ञ।
Teesara Netra - Part 2 (The Third Eye - Part 2)
Title Teesara Netra - Part 2
(The Third Eye - Part 2)Author Shri Arun Kumar Sharma Language Hindi Publication Year: Third Edition - 2008 Price Rs. 300.00 (free shipping within india) ISBN 9788190679626 Binding Type Hard Bound Pages xvi + 32 + 464 Pages Size 22.5 cm x 14.0 cm