गुफा काफी लम्बी चौड़ी थी। प्रवेश करते ही ऐसा लगा जैसे संसार से अलग हो गया है मेरा अस्तित्व और मैं किसी अनजाने अपरिचित स्थान में आ गया हूँ। सोचा गुफा के भीतर अन्धकार होगा, लेकिन वहाँ चारों तरफ एक हल्का-हल्का शुभ्र प्रकाश फैला हुआ था। वह प्रकाश कहाँ से आ रहा था? समझ में नहीं आया। गुफा की दीवारों में छोटे-छोटे छेद थे जिनमें से ताजी बरसाती हवा भीतर आ रही थी। कच्ची जमीन पर खजूर की चटाईयाँ बिछी हुई थीं और उनके ऊपर कम्बल। एक और मिट्टी के बर्तन थे और एक गगरी थी जिसमें पानी भरा हुआ था। इनके अलावा और कुछ नहीं। बैठ गया मैं कम्बल पर। बड़ा सुख मिला। रत्नकल्प बोले - बाबा! आप भूखे प्यासे होंगे काफी थके हारे भी होंगे। कहिये क्या करूँ आपके लिये बाबा?
यह सुन कर मन ही मन सोचने लगा - मेरे लिये इस बीहड़ निर्जन प्रान्त में क्या करेगा बेचारा यह सन्यासी। शायद मेरे मन की बात समझ गया रत्नकल्प। मेरी ओर देखकर एक बार मुस्कुराया ओर उसकी रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ ही घुप अन्धेरा छा गया एकबारगी गुफा में। हे भगवान्! यह क्या? कुछ बोलने ही वाला था कि तभी पहले जैसे शुभ्र प्रकाश से भर उठी पूरी गुफा। मैंने सिर घुमा कर चारों ओर देखा। गुफा का वातावरण बदल चुका था। जमीन पर सुन्दर कालीन, शानदार पलंग, चमचमाते बर्तन, आवश्यक वस्त्र, दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएँ और थालियों में सजे ताजे फल और गरम गरम भोजन। अवाक् और स्तब्ध रह गया मैं - यह सब कुछ देखकर।
Vehe Rahasyamay Sanyasi (The Mysterious Saint)
Title Vehe Rahasyamay Sanyasi
(The Mysterious Saint)Author Shri Arun Kumar Sharma Language Hindi Publication Year: First Edition - 2007 Price Rs. 250.00 (free shipping within india) ISBN 8OTWRKMH Binding Type Hard Bound Pages xxxviii + 332 Pages Size 22.0 cm x 14.0 cm