तीसरे चित्र को देखते ही आश्चर्य के मारे मैं स्तब्ध रह गया। हे भगवान्! क्या देख रहा था उस चित्र में मैं। उसका कागज़ भी जीर्ण था। रंग भी फ़ीका था पर वह चित्र अभी एक माह पहले के प्रसंग का और मेरा ही चित्र था वह। अमावस की रात को बाहर खड़ा मैं अन्दर का दृश्य देख रहा था। उसी प्रसंग का चित्र था। अमावस की रात थी। गहरा अन्धकार था। कापालिक मठ की उस रहस्यमय खिड़की से छनकर रोशनी मुझ पर पड़ रही थी। मैं अपने हाथ में पत्थर का टुकड़ा लिये हुए था। मेरे चेहरे पर भय और विस्मय के भाव थे। आँखें विस्फारित थी। होंठ चीखने की मुद्रा में खुले हुए थे। उस वक्त का एकदम सही चित्र था। कहीं कोई भ्रम नहीं था, अविश्वाश भी नहीं किया जा
सकता था।
मैंने अस्फुट स्वर में कहा - "यह चित्र तो मेरा अपना ही है। एक मास पूर्व का, पर यह कैसे सम्भव कैसे हुआ?"
"सम्भव होना आसान है। मेरे पितामह के परदादा श्री वेणी माधव तामणे ने आपको इसी रूप में देखा होगा।"
"क्या कहा!"
उत्तर में समझाते हुए तामणे महाशय ने बतलाया - "जिस व्यक्ति ने कमरे के भीतर से आपको घूर कर देखा था, वे वेणी माधव जी ही थे। उनके साथ जो लोग हवनकुण्ड के पास बैठे थे वे लोग उनके सहयोगी थे। बाद में आपने एक और व्यक्ति को देखा होगा कापालिक सन्यासी के भेष में।"
"हाँ देखा था। कौन था वह जटाजूटधारी भयानक सन्यासी?"
"वही थे वेणी माधव जी के कापालिक गुरु स्वामी प्रज्ञानन्द।"
"एक बात मैं और पूछ सकता हूँ?"
"पूछिये।"
"उस यज्ञ-भूमि में वह नग्न युवती कौन थी?"
मेरी बात सुन कर कुछ क्षण के लिये तामणे महाशय मौन साध गये, फ़िर बोले - "वह कापालिनी थी। भयंकर कापालिनी। उसी का आश्रय लेकर, उसी के माध्यम से स्वामी प्रज्ञानन्द ने रसायनविद्या में सिद्धि-लाभ किया था।" थोड़ा रुक कर तामणे महाशय ने आगे कहना शुरु किया - "आपने चार सौ वर्ष पूर्व का दृश्य देखा था, मगर इस समय कापलिनी की आयु कम से कम पाँच सौ वर्ष है। वह मर कर भी जीवित है। उसकी आयु अक्षुण्ण है। कालञ्जयी है वह कापालिनी। उसी की अगोचर सहायता, निर्देशन और मार्गदर्शन में मैं स्वयं पिछले 45 साल से रसायनविद्या और काष्ठ औषधितन्त्र में शोध और अन्वेषण कर रहा हूँ।
Vehe Rahasyamaya Kaapalik Math (The Mysterious Kapalik Shrine)
Title Vehe Rahasyamaya Kaapalik Math
(The Mysterious Kapalik Shrine)Author Shri Arun Kumar Sharma Language Hindi Publication Year: First Edition - 1999 Price Rs. 225.00 (free shipping within india) ISBN 8171242227 Binding Type Hard Bound Pages viii + 204 Pages Size 22.5 cm x 14.0 cm