अन्तरंग साधना भूमि में छः प्रकार का दीक्षा क्रम है जिनमें प्रमुख है शक्तिपात दीक्षा। इसी दीक्षा को प्राप्त कर साधक अन्तरंग भूमि में प्रवेश करता है। शक्तिपात दीक्षा तान्त्रिक साधना की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दीक्षा है। साधक के बहिरंग साधना में पूर्ण पारंगत होने के पूर्व संस्कार के अनुसार यथासमय सदगुरु स्वयं उपस्थित होकर यह दीक्षा प्रदान करते हैं। दीक्षा के पूर्व सदगुरु शिष्य के स्थूल शरीर को विशेष तान्त्रिक क्रिया द्वारा भाव शरीर और शूक्ष्म शरीर से पृथक करते हैं और दोनों के साथ अपने भाव और् शूक्ष्म शरीर का सम्बन्ध स्थापित करते हैं। तदनंतर क्रम से दोनों का उल्लंघन कर मनोमय शरीर से तादात्म्य स्थापित करते हैं और उसी में शक्तिपात दीक्षा प्रदान करते हैं। तन्त्र की बहिरंग साधना दीक्षा गृहण करने के पश्चात मनोमय शरीर से शुरु होकर निर्वाण शरीर में जाकर समाप्त होती है। तात्पर्य यह है कि अन्तरंग साधना साधना क्रम से चार शरीरों के माध्यम से सम्पन्न होती है। साधना काल में स्थूल की तरह सूक्ष्म शरीर भी निष्क्रिय रहता है, सक्रिय रहता है केवल मनोमय शरीर। इसी शरीर द्वारा तन्त्र की सर्वोच्च और गुह्य साधना, बिन्दु साधना भी सम्पन्न होती है।
Yog Tantrik Saadahana Prasang
Title Yog Tantrik Saadahana Prasang Author Shri Arun Kumar Sharma Language Hindi Publication Year: First Edition - 2011 Price Rs. 250.00 (free shipping within india) ISBN 9788190679671 Binding Type Hard Bound Pages xxxxviii + 332 Pages Size 22 cm x 15 cm